Sunday, October 28, 2018

ये वक़्त

कभी उसके पास वक़्त काम था
कभी मुझे जल्दी थी
बहुत तेज रफ़्तार से मानो
रेल गाडी समान जिंदगी चल दी थी

वक़्त खड़ा मूक बना
टकटकी बांधे देखता था
उससे कितने आगे निकल पाएंगे
वो शायद ये सोचता था

हर पल ख़ुशी और दुःख के
मोती की तरह सजोये थे
वक़्त ने तो बड़ी सजींदगी से
जीवन की माला में वो मोती पिरोये थे

हमारे दरवाजे पर दस्तक देकर
वक़्त कुछ इशारा करता था
जरा सा ठहरो तुम
शायद तेज चलने से वो डरता था

हमें क्या मालुम था एक दिन
ये वक़्त निकल जायेगा
न बचपन, न जवानी
लौटकर कुछ न आएगा

ठहरकर कुछ लम्हे हमने
फिर वक़्त के साथ बिताये थे
ऐसा लगा मानो हम
सारा संसार पाए थे