Friday, September 20, 2013

मेरे घर

वो आये मेरे घर आज मुददतो के बाद
बुढापे में हुस्न के कदरदान कम हो जाते हैं|| 

Thursday, September 19, 2013

पीछे मुड़कर जब

पीछे मुड़कर जब देखता हु मैं, मंद मंद मुस्कुराता हु

दूर तक फैली हुई ज़िन्दगी, और उसमे बिताया वो एक एक पल
ऐसा लगता है मानो हुआ हो जैसे सब कुछ बस कल
ना कुछ मिटाना है मुझको न कुछ मैं बदलना चाहता हु
पीछे मुड़कर जब देखता हु मैं, मंद मंद मुस्कुराता हु

कितनी राहें तय की थी, और कितनी मंजिल मैं पहुच गया
कितने साथी साथ रहे और ना जाने कितना कुछ छूट गया
जो छुटा उसका गम नहीं, जो पाया उसका जश्न मनाना चाहता हु
पीछे मुड़कर जब देखता हु मैं, मंद मंद मुस्कुराता हु
 
कुछ सपने मिलकर देखे थे और कुछ सपने मैंने देखे अकेले थे
मैंने भी किसी के सपने तोड़े, और कुछ मेरे सपनो से भी खेले थे
पर मैं सपनो का सौदागर नहीं, बस ये बतलाना चाहता हु
पीछे मुड़कर जब देखता हु मैं, मंद मंद मुस्कुराता हु

कितनी बातें थी जो ना कहनी थी, पर फिर भी मैं कह गया
ऐसा भी था कुछ जो न सुन्ना था, पर मैं चुपचाप सह गया
दर्द हुआ था उन लम्हों मैं मुझको भी, ये जताना चाहता हु
पीछे मुड़कर जब देखता हु मैं, मंद मंद मुस्कुराता हु

कुछ लम्हे ऐसे भी आये, जब समझो बस सांस ही बाकी थी
उन कठिन लम्हों में ही तो हमने जीवन की कीमत आंकी थी
अनमोल है जीवन ये सीखा था, और बस ये ही सिखाना चाहता हु
पीछे मुड़कर जब देखता हु मैं, मंद मंद मुस्कुराता हु