Saturday, September 29, 2018

हनुमान और नेहरू

कृष्ण काफी दुविधा में थे, युद्ध के मैदान के बीच में अर्जुन ने फिर एक अजीब से मांग रख दी थी| यूँ तो वो वाक्पटुता के मंझे हुए खिलाड़ी थे पर बहुत देर संवाद के बाद भी इस गुत्थी को वो सुलझा नहीं पाए थे

कृष्ण: अर्जुन मुझे तुम्हारी मांग तर्कसंगत नहीं लगती| आखिर हर मांग का कुछ तो औचित्य होना चाहिए
अर्जुन: मेरी मांग पूर्ण रूप से सही है, अगर आप पूरा नहीं कर सकते तो मना कर दीजिये
अर्जुन के शब्द कृष्ण को भेदते हुए निकल गए

कृष्ण: पूर्ण रूप से सही है पर कैसे?
अर्जुन: मैंने कुछ ज्यादा कहाँ माँगा है
कृष्ण: तुमने जो माँगा है वो ज्यादा नहीं नामुमकिन है|

अर्जुन: मैं कुछ नहीं जानता, जब तक आप हनुमान को नहीं लाओगे मैं अब युद्ध नहीं लडूंगा
कृष्ण: अर्जुन तुम जानते हो कितना वक़्त हुआ रामायण को, राम को और हनुमान को, अब इस युग में मैं हनुमान कहाँ से लाऊँ

अर्जुन: जब २०१८ में मोदी जी नेहरू जी को ला सकते हैं तो आप इस युग में हनुमान को तो ला ही सकते हैं. आप जानते हैं कितना वक़्त हुआ नेहरू जी को|

कृष्ण को मालूम नहीं था की भारत की वर्तमान राजनैतिक स्थति से अर्जुन इतना प्रभावित है, शाम का वक़्त था और तभी युद्ध ख़तम होने का संख बजा| उन्हें इस समस्या कोई समाधान नज़र नहीं आ रहा था|

कृष्ण जी ने चैन की सांस ली और रथ का रुख महल की तरफ किया| उन्होंने मन में सोचा की कल सुबह तक मोदी जी किसी और विषय पे बयान दे वरना कल भी पूरा दिन 'हनुमान और नेहरू' की बहस में निकल जायेगा|