Wednesday, October 8, 2014

बॉलीवुड बाबा

सारे छात्र उन्हें बॉलीवुड बाबा के नाम से जानते थे. ये नाम किसी ने उन्हें ऐसे ही नहीं दिया था, उन्होंने कमाया था अपने बॉलीवुड प्रेम के कारण, बॉलीवुड के दीवाने थे वो. राज कपूर हो या रणबीर कपूर, १९६० हो या २०१०, उन्हें बॉलीवुड की हर फिल्म, हर अभिनेता, अभिनेत्री, लेखक, गायक, निर्देशक अजी यु कहिये बॉलीवुड के हर खबर की खबर रखते थे बॉलीवुड 'बाबा'. बॉलीवुड के साथ मानो 'अमर प्रेम' था बाबा का.

"क्या हुआ बाबा आज चेहरा कोरा कागज़ नजर रहा है आपका", एक छात्र ने पूछा.
पढ़ाना तो उन्होंने लगभग साल पहले बंद कर दिया था पर आज भी एक आध घंटे के लिए स्कूल चले आते थे, ३० साल पढ़ाने के बाद स्कूल से लगाव नहीं छूटा था उनका. और इसी बहाने बच्चो को हिंदी के कुछ पाठ भी पढ़ा दिया करते थे

"हाँ, बेटा कुछ नहीं, बस पुरानी यादें"

"क्या बाबा फिर से मधुबाला?", मजाक में एक छात्र ने कहा.

बाबा ने कोई जवाब नहीं दिया, और सोच में डूब गए. रात का सपना उनके जहन में अभी भी था, पर सपना अधूरा सा था. बाबा को इतना तो याद था की सपना किसी हिंदी फिल्म का ही था पर कुछ ज्यादा याद नहीं रहा था. सुबह से बाबा याद करने की कोशिश भी कर चुके थे पर कुछ भी याद नहीं आया. बस याद आया तो इतना भर की फिल्म का हीरो मर जाता है. पर ये तो काफी हिंदी फिल्मो में होता है.

"अच्छा बच्चो ऐसी फिल्म का नाम बताओ जीमे हीरो मर जाता है"

बाबा "शोले"
बाबा "बाज़ीगर"
बाबा "डॉन"

"बेटा डॉन में हीरो नहीं विलन मरता है"
बाबा शाहरुख़ खान वाली डॉन में तो हीरो ही मरता है.

बाबा को लगा की ये क्या सवाल पूछ लिया, अनगिनत फिल्में हैं जिनमे हीरो मर जाता है. और बाबा बच्चो से अलविदा कर चल पड़े अपने घर की और. वो अधूरा सपना बाबा के जहाँ में अभी भी जिन्दा था और बाबा को मनो चुनौती दे रहा था "पहचान कौन". बाबा ने ठान ली की वो ढूंढ कर रहेंगे की आखिर ये सपना कौन सी फिल्म से प्रेरित है.

तीन दिन तक बाबा ने कोई बीस से ज्यादा फिल्में देख डाली, शोले से शुरू कर, बाज़ीगर, दीवार, देवदास और भी ऐसे ही कई फिल्में. पर कुछ समझ नहीं आया, बाबा ने तीसरी बार शोले शुरू कर दी.

"कोई है अंदर", तीन दिन जब बाबा स्कूल नहीं आये तो दो छात्र बाबा को ढूंढते हुए उनके घर पहुंच गए.

"अरे आओ राजा और अमित, क्या हुआ इधर कैसे आ गए आज"

"कुछ नहीं बाबा, आप स्कूल नहीं आये तो हमने सोचा की चल कर देख लें की आप कैसे हैं, आप कुछ बीमार लग रहे हैं"

तीन दिन भूख, प्यास, नींद सब छोड़कर सपने को सुलझाने में लगे थे बाबा और इसका असर उनके चेहरे पर साफ़ दिख रहा था. उनके बॉलीवुड प्रेम और अधूरे सपने ने उनकी भूख, प्यास, नींद सब उड़ा दिए थे. इस अधूरे सपने को सुलझाना मानो उनकी जिद बन गया था.

"भ्रष्टाचार"   बाबा ने अचानक तेज से बोला और राजा और अमित की और देख कर सहम गए.

बच्चो मेरी एक मदद करोगे, अपने भगवान से कुछ सवाल पूछकर बताओ मुझे.

बाबा भगवान तो एक ही है, आपका भी और हमारा भी.

नहीं, तुम लोगो का भगवान तो गूगल है.

बाबा को इतना पता हो गया की हीरो मरता है और भ्रष्टाचार से लड़ते हुए मरता है पर ऐसा भी न जाने कितनी फिल्मो में होता है. टीवी पर अभी भी शोले ही चल रही थी. संजीव कुमार को देखकर बाबा को लगा की कुछ तो रिश्ता है संजीव कुमार का उनके सपने के साथ पर.... हीरो संजीव कुमार, सोच में पड़ गए बाबा. बच्चो और गूगल की मदद से बाबा ने कुछ और फिल्मो के नाम ढूंढे और फिर जूट गए अपने यादाशत ताजा करने में. पर सवाल इतना आसान ना था. कुछ देर बाद राजा और अमित बाबा को नमस्ते कर अपने घर चले गए

लगभग एक हफ्ते तक बाबा अपने घर से नहीं निकले और ना ही कोई उनके घर गया. एक हफ्ते बाद राजा और अमित जब बाबा के घर पहुंचे तो देखा की घर का दरवाजा खुला था. जब वो अंदर घुसे तो उन्होंने देखा की टीवी पर दीवार चल रही थी और बाबा लगभग बेहोश हालत में फर्श पर पड़े हुए थे. जब राजा ने बाबा को उठाने के लिए उनका हाथ पकड़ा तो हक्का बक्का रह गया. बाबा का शरीर बुखार से तप रहा था.

अस्पताल पहुचने पर पता चला की बाबा दस दिन से बिना कुछ खाया पिए ही रह रहे थे. उन्हें इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करवाया गया. बाबा के परिवार वाला तो कोई नहीं था, स्कूल के कुछ अध्यापक और बच्चे आ गए थे बाबा को देखने.

अगले दिन जब बाबा को होश आया तो बोले "अस्पताल", उनका बॉलीवुड प्रेम ज़िंदा था.

"राजा अब बता, हीरो मर जाता है, भ्रष्टाचार से लड़ते हुए मरता है और अस्पताल में मरता है, शायद संजीव कुमार से भी कोई रिश्ता है फिल्म का", इतनी सहजता से सारे मोतियों को एक साथ पिरो दिया बाबा ने, अब गूगल बाबा की बारी थी. बच्चो को समझ आ गया था की अगर बाबा का सपना न सुलझा और फिल्म का नाम न पता चला तो बाबा चल बसेंगे.

"बाबा शोले और शतरंज के खिलाड़ी, पर इनमे अस्पताल नहीं है"

"शोले", हाँ बाबा सोचने लग गए.

"धर्मेद्र और संजीव कुमार की और कौन से फिल्में....." पूरी बात कहने से पहले ही बाबा फिर से बेहोश हो गए.

शोले, सीता और गीता, चला मुरारी हीरो बनने, कुंवारा बाप, सत्यकाम और .....


"सत्यकाम" बाबा ने बेहोशी की हालत में ही जवाब दे दिया, बच्चो ने देखा की बाबा के चेहरे पर हलकी सी मुस्कान थी.

Thursday, September 18, 2014

शब्दों को व्यापार

कुछ अपने शब्द
कुछ बेगाने शब्द
कुछ नए शब्द
कुछ पुराने शब्द

कुछ कड़वे शब्द
कुछ मीठे शब्द
कुछ फीके शब्द
कुछ तीखे शब्द

कभी शब्दों में भी छिपे शब्द
कभी बिन शब्दों के भी दिखे शब्द

कुछ उलझे शब्द
कुछ सुलझे शब्द
कुछ महके शब्द
कुछ बहके शब्द

कुछ झूठे शब्द
कुछ सच्चे शब्द
कुछ बुरे शब्द
कुछ अच्छे शब्द

कभी ख़ुशी दिलाते शब्द
कभी बहुत रुलाते शब्द

कुछ जीत शब्द
कुछ हार शब्द
कुछ नफरत शब्द
कुछ प्यार शब्द

कभी अभिमान शब्द
कभी अपमान शब्द
कभी धर्म शब्द
कभी ईमान शब्द

मानो जीवन है बस
शब्दों को व्यापार
जो कर सका सही मोल भाव
उसका हुआ संसार

Saturday, September 13, 2014

मंजिल या रास्ता

जब मंज़िलें हो दूर, बस रास्ते पर रख तू ध्यान

मंजिलें ना भी मिलें तो क्या
रास्ते बना सकते हैं तुझे खुदा

Sunday, August 24, 2014

एक दिन ये दुर्गा

मेरा तो मुझसे ही द्वन्द है
तुम्हारी साख बचाने को
मुझे नहीं जरुरत गोपाल की
अपनी लाज बचाने को

माँ की कोख से ही मेरा
संघर्ष शुरू हो जाता है
बेटे पर होता है जश्न
मेरे से मातम छा जाता है

पूरा जीवन मेरा तो
प्रताड़ना की एक कहानी है
बचपन मेरा घर में लड़ता है
घर के बाहर लड़ती जवानी है

इतिहास गवां है रणभूमि में
मैंने भी शस्त्र उठाये हैं
देश समाज की खातिर मैंने
दुश्मन मार गिराये हैं

पर शस्त्र  नहीं हैं मेरी शोभा
मुझको ना लाचार करो
कुछ कायरो से लड़ने को
ना इतनी फ़ौज तैयार करो

मेरी मर्यादा मेरी ममता
आखिर कब तक जीतेगी
एक दिन ये दुर्गा
अपनी तलवार तो खींचेगी

Tuesday, August 12, 2014

धर्म का रास्ता

स्वर्ग के लिए बना है या संसद के लिए बना है
ये धर्म का रास्ता आखिर ले जाता कहाँ है 

Sunday, April 20, 2014

मास्टर जी की कहानियां

तीस सालों में कभी किसी से इस बारे में बात ही नहीं की. ना कभी अपनी बीवी को बताया, ना कभी अपनी बेटी को और ना कभी दोस्तों को, पर पता नहीं क्यों आज फिर से एक बार मास्टर जी से कहानी सुनने का मन हुआ, या शायद आज तीस साल बाद मुझे जीवन में फिर से प्रेरणा की जरुरत थी.

बहुत प्रेरित करती थीं मास्टर जी की कहानियां.

गाँव के उस स्कूल में कूल मिलाकर तीन अध्यापक थे पर मास्टर जी की बात ही अलग थी, यूँ तो वो हिंदी और गणित पढ़ाते थे पर सारे बच्चे उन्हें पसंद करते थे उनकी कहानियों के लिए. मास्टर जी की हर कहानी बच्चो को जीवन में कुछ हासिल करने की लिए, कुछ बनने के लिए प्रेरित करती थीं. वैसे तो मास्टर जी के २० साल के करियर में कुछ ८-१० कहानियां ही थीं पर बच्चो को प्रेरित करने के लिए वो काफी थीं और आखिर हो भी क्यों ना, ये ८-१० कहानियां इसी स्कूल से निकले उन बच्चो की थीं जिन्होंने जीवन में कुछ हासिल किया था.

जब मैं गाँव पंहुचा तो सुबह के १० बजे थे, मुझे तो मालुम भी ना था की स्कूल आज भी चलता है या मास्टर जी आज भी स्कूल में पढ़ाते हैं पर ना जाने क्यों लगा की शायद चलता होगा और शायद मास्टर जी भी होंगे. मास्टर जी हफ्ते में सिर्फ दो दिन कहानी सुनाते थे मंगलवार को और शुक्रवार को, और आज शुक्रवार ही था

गाँव पहुंचकर में पहले सरिता मामी के घर गया. उन्हें भी मेरे हालात के बारे में कुछ ज्यादा नहीं पता था और ना ही मैंने कुछ ज्यादा बताया. थोड़ी देर बात करने के बाद मैंने मास्टर जी के बारे में पूछा, मामी का जवाब सुनकर मुझे एक अजीब सा अहसास हुआ,शायद थोड़ी सी ख़ुशी हुई और मैं चल दिया स्कूल की तरफ. पता नहीं मेरे चेहरे और मेरी आँखों ने मामी को सब कुछ बताया या उन्होंने खुद समझा पर वो भी मेरे साथ स्कूल की तरफ चल पढ़ी.

"हमारी आज की कहानी का मुख्य पात्र है - अमित कुमार", नाम सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए, वैसे मास्टर जी की हर कहानी रोंगटे खड़े करने वाली हो होती थी.

"तो बच्चो अमित कुमार ने १९८० में इसी स्कूल से आठवी पास की थी और फिर वो शहर स्कूल पढ़ने गया था".

मैंने मास्टर जी को नमस्ते की और फिर मैं जमीन पर बीछी चटाई पर बैठ गया मास्टर जी की कहानी सुनने, सारे बच्चो ने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर कहानी में डूब गए.

मास्टर जी ने बच्चो को बताया की कैसे अमित गाँव से शहर पढ़ने गया, कैसे फिर उसने अच्छे कॉलेज इस इंजीनियरिंग की और फिर आगे की पढाई के लिए अमेरिका गया. मास्टर जी पूरे आनंद से अमित की कहानी सुना रहे थे.

और अपने ख्यालो में खोया हुआ ये सोच रहा था की काश में मास्टर जी के पास तीन साल पहले आता जब मेरी बीवी मुझे तलाक देकर मेरी एकलौती बेटी के साथ मुझे हमेशा छोड़कर चली गयी थी, या फिर तब आता जब ६ महीने पहले मुझे नौकरी से निकाल दिया गया था. पता नहीं क्यों ६ महीने इंतज़ार करने के बाद मैंने ये फैसला किया की अब अमेरिका छोड़ना ही मेरे लिए सही है. पिछले ३ सालो में मैं जिंदगी से हार सा गया था .

"तो बच्चो आज अमित अमेरिका में एक बहुत बड़ी कंपनी चलाता है और अपनी बीवी और बेटी के साथ वहीँ रहता है"

सफलता और असफलता देखने वाले के नजरिये पर निर्भर करती है. अपनी नजरिये से मैं शायद आज असफल था पर मास्टर जी के नजरिये से सफल. और मास्टर जी की कहानी ने आज फिर से सुनने वालो को प्रेरित किया था और उन प्रेरित होने वालो में से एक उस कहानी का मुख्य पात्र था.

कहानी खत्म करने के बाद मास्टर जी बच्चो के सवालो में व्यस्त हो गए. मैं चुपचाप उठकर चलने लगा तो मास्टर जी ने पूछा की बेटा कौन हो तुम?

"मास्टर जी ये ही तो है......" इससे पहले की सरिता मामी मेरा नाम बताती मैंने उन्हें रोक दिया. मेरे अंदर ना तो मास्टर जी की कहानी का अंत बदलने की शक्ति थी और न ही बच्चो की उम्मीद तोड़ने की.

मास्टर जी की कहानियां सच में आज भी बहुत प्रेरित करती हैं|








Saturday, April 12, 2014

राज

अगर राजनीति में 'राज' ना होता |
वो जो आज है, वो आज ना होता ||