Saturday, September 15, 2018

आम का पेड़

गर्मी की तेज दोपहरी होती
या झमाझम सावन की बारिश
खेलने का मन होता
या यु ही बैठे रहने का
मेरे बचपन का मानो केंद्र बिंदु
आँगन के बहार वो आम का पेड़

कभी पिता के साथ
तो कभी भाई के साथ
चाचा के साथ तो
कभी मामा के साथ
हर पल मानो मेरे साथ रहता
आँगन के बहार वो आम का पेड़

फिर अचानक एक दिन
माँ ने मुझे बुलाया और कहा
अब तू बड़ी हो गयी है
घर के अंदर रहना है तुझको
और बस ऐसे ही दूर कर दिया मुझसे
आँगन के बहार वो आम का पेड़

भाई था पर दीदी ना थी
पिता थे पर माता ना थी
चाचा थे पर चाची न थी
ये तो कभी मैंने सोचा ही न था
की बस पुरुषो के लिए ही था
आँगन के बहार वो आम का पेड़

वर्षो बाद जब आज मायके गयी
कुछ वक़्त बैठ गयी फिर वहीँ
आज भी वही आनंद और सुकून
कोई भेदभाव नहीं करता था
आँगन के बहार वो आम का पेड़

तभी माँ ने आवाज लगायी
अंदर आजा वहाँ क्यों बैठी है
मैं उठी और घर के अंदर चल दी
पीछे पलटी तो देखा, टकटकी बांधकर मुझे बुलाता 
आँगन के बहार वो आम का पेड़