Saturday, August 14, 2010

ए कलम मेरे .........

ए कलम मेरे .........

कितनी माँगें तब उजड़ी थीं, तब हर माँ ने पलक भीगोये थे
आज़ादी तुझे पाने को हमने कितने भगत सिंह खोए थे

कितनी आँखे तब जागीं थीं, कितने सपने ता उम्र ना सोए थे
क्या काट रहे हैं आज के नेता और क्या बीज उस गाँधी ने बोए थे

लिख तू आज कुछ ऐसा जो जमाने को आज़ादी के मायने समझा दे
ए कलम मेरे स्याही कुछ इस तरह से बहा दे.............

देश प्रेम की बातें बस कहानी किस्से रह गये
जो करना था जो कहना था, गाँधी नेहरू कह गये

वो प्यार भारी बातें और बातो की नरमी कहाँ गयी
वो जोशीला खून और उस खून की गरमी कहाँ गयी

लिख तू आज कुछ ऐसा जो कुछ और भगत सिंह सुखदेव बना दे
ए कलम मेरे स्याही कुछ इस तरह से बहा दे ...............

हर भूखे को जो दो रोटी दिला दे
हर बच्चे को जो किताब थमा दे
हर अंधेरे घर मे जो दिया जला दे
हर इंसान को शांति का पाठ पड़ा दे

लिख तू आज कुछ ऐसा जो घर घर मे आज़ादी मना
देए कलम मेरे श्याही कुछ इस तरह से बहा दे .........
ए कलम मेरे .......