Saturday, February 9, 2013

तेरी गली


ना वो खुशबु थी, ना रौशनी और ना ही वो आशिको का जमघट

तेरी गली से जब आज निकला तो लगा की शायद तूने ठिकाना बदल लिया.

Sunday, February 3, 2013

शब्द


शब्दों पर मुक़दमा था देश के खिलाफ बगावत का
अदालत में बैठे ग़ालिब के हाथ पर हथकड़ी थी

देश की अखंडता और एकता का मामला था
ग़ालिब ने सोचा "खुद को ख़तम करू या शायरी को"

क्यूंकि भावनाओ को ख़तम करना आसान नहीं.