Sunday, December 26, 2010

आज सोचता हू !

मंजिले भी उसकी थी
रास्ता भी उसका था
एक मैं अकेला था
काफिला भी उसका था

साथ साथ चलने की
सोच भी उसकी थी
फिर राहें बदलने का
फैसला भी उसका था

आज सोचता हू तो
दिल सवाल करता है
लोग तो उसके थे
क्या खुदा भी उसका था ?

Saturday, October 16, 2010

.........हाथ में खंजर था

(Note: A poem about Indo-Pak partition)

हर और तबाही छाई थी
और शैतानो का मंजर था
मैं देख रहा था खड़ा हुआ
बापू के हाथ में खंजर था

पहले धर्मो में बाटा था
फिर हिस्सों में काटा था
जिस और भी जाती थी नज़र
मायूसी थी और सन्नाटा था

हर मुस्लिम ने दफनाया था कुछ अपनों को
हर हिन्दू ने अपनों की चिता जलाई थी
लड़े थे गुलामी की रात से मिलकर
और उस रात ने क्या खूब सुबह पायी थी

गौरो को मिली थी आजादी उस दिन
हमारे हिस्से फिर गुलामी आई थी
लुटती देखकर इज्जत तब
भारत माता रोई थी चिल्लाई थी

डूबा था देश खून की होली में
हर तरफ लाशों का समंदर था
मैं देख रहा था खड़ा हुआ
बापू के हाथ में खंजर था
...........बापू के हाथ में खंजर था !!!

Thursday, October 7, 2010

....खेल है

अखबारों में छपते है जो
उनके घर नोटों का खेल है

छपकर भी बचते है जो
वो सारा वोटो का खेल है

किसी के लिए बस कोर्ट है खाफी
किसी के लिए पूरा Stadium खेल है

किसी के लिए बस सो मीटर की बात है
किसी के लिए पूरा शहर खेल है

किसी ने जिंदगी दे दी देश को
किसी के लिए देश से सिर्फ लेना खेल है

आज भी चालीश करोड़ खिलाडी हैं भारत में
जिनके लिए सिर्फ रोटी कपडा ही खेल है

-अंकुर




Saturday, August 14, 2010

ए कलम मेरे .........

ए कलम मेरे .........

कितनी माँगें तब उजड़ी थीं, तब हर माँ ने पलक भीगोये थे
आज़ादी तुझे पाने को हमने कितने भगत सिंह खोए थे

कितनी आँखे तब जागीं थीं, कितने सपने ता उम्र ना सोए थे
क्या काट रहे हैं आज के नेता और क्या बीज उस गाँधी ने बोए थे

लिख तू आज कुछ ऐसा जो जमाने को आज़ादी के मायने समझा दे
ए कलम मेरे स्याही कुछ इस तरह से बहा दे.............

देश प्रेम की बातें बस कहानी किस्से रह गये
जो करना था जो कहना था, गाँधी नेहरू कह गये

वो प्यार भारी बातें और बातो की नरमी कहाँ गयी
वो जोशीला खून और उस खून की गरमी कहाँ गयी

लिख तू आज कुछ ऐसा जो कुछ और भगत सिंह सुखदेव बना दे
ए कलम मेरे स्याही कुछ इस तरह से बहा दे ...............

हर भूखे को जो दो रोटी दिला दे
हर बच्चे को जो किताब थमा दे
हर अंधेरे घर मे जो दिया जला दे
हर इंसान को शांति का पाठ पड़ा दे

लिख तू आज कुछ ऐसा जो घर घर मे आज़ादी मना
देए कलम मेरे श्याही कुछ इस तरह से बहा दे .........
ए कलम मेरे .......