Thursday, May 16, 2013

साल 1947 (3)


ये उनसे पूछो जिहोने देखा था वो मंजर |
की कैसे इंसान हैवान बन जाता है ||

साल 1947 (2)


चंद इंसानों की जीत ने अक्सर पूरी इंसानियत को हराया है |
कभी हिस्सों में बाटा है, कभी टुकडो में काटा है ||

साल 1947


तमन्ना जागी थी मेरे दिल में फिर से गुलामी की |
जब देखा लाशो का ढेर, औरतो का बलात्कार, बच्चो के टुकड़े और जमीन का रंग ||

Tuesday, May 14, 2013

जिन्दगी


जिन्दगी मानो एक तरफ पहाड़ और एक तरफ खाई थी |
हम कई दफा पहाड़ पर भी चढ़े और कई दफा खाई में भी उतरे ||

शुक्रगुजार हूँ मैं तेरा किस्मत, तूने ना की बेवफाई थी |
जिंदगी फिर से एक तरफ पहाड़ और एक तरफ खाई थी ||