Sunday, August 24, 2014

एक दिन ये दुर्गा

मेरा तो मुझसे ही द्वन्द है
तुम्हारी साख बचाने को
मुझे नहीं जरुरत गोपाल की
अपनी लाज बचाने को

माँ की कोख से ही मेरा
संघर्ष शुरू हो जाता है
बेटे पर होता है जश्न
मेरे से मातम छा जाता है

पूरा जीवन मेरा तो
प्रताड़ना की एक कहानी है
बचपन मेरा घर में लड़ता है
घर के बाहर लड़ती जवानी है

इतिहास गवां है रणभूमि में
मैंने भी शस्त्र उठाये हैं
देश समाज की खातिर मैंने
दुश्मन मार गिराये हैं

पर शस्त्र  नहीं हैं मेरी शोभा
मुझको ना लाचार करो
कुछ कायरो से लड़ने को
ना इतनी फ़ौज तैयार करो

मेरी मर्यादा मेरी ममता
आखिर कब तक जीतेगी
एक दिन ये दुर्गा
अपनी तलवार तो खींचेगी