Saturday, October 16, 2010

.........हाथ में खंजर था

(Note: A poem about Indo-Pak partition)

हर और तबाही छाई थी
और शैतानो का मंजर था
मैं देख रहा था खड़ा हुआ
बापू के हाथ में खंजर था

पहले धर्मो में बाटा था
फिर हिस्सों में काटा था
जिस और भी जाती थी नज़र
मायूसी थी और सन्नाटा था

हर मुस्लिम ने दफनाया था कुछ अपनों को
हर हिन्दू ने अपनों की चिता जलाई थी
लड़े थे गुलामी की रात से मिलकर
और उस रात ने क्या खूब सुबह पायी थी

गौरो को मिली थी आजादी उस दिन
हमारे हिस्से फिर गुलामी आई थी
लुटती देखकर इज्जत तब
भारत माता रोई थी चिल्लाई थी

डूबा था देश खून की होली में
हर तरफ लाशों का समंदर था
मैं देख रहा था खड़ा हुआ
बापू के हाथ में खंजर था
...........बापू के हाथ में खंजर था !!!