Tuesday, October 23, 2012

दोस्ती

स्कूल में जब वो पहले दिन आया था
सहमा सा उससे मैंने एक कोने में बैठे पाया था
कपडे उसके बाकी बच्चे जितने साफ़ ना थे
और इसीलिए क्लास के बच्चे उसके पास ना थे
लंच ब्रेक में मैंने उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढाया
और हम दोनों ने मिलकर मेरा लंच खाया

...तब में आठ साल का था और वो सात का


ईद का दिन था आज और उसने था सोचा
अम्मी को दूंगा कुछ अच्चा सा तोहफा
कुल मिलकर हम पर था सिर्फ सोलह रुपैया
कुछ नहीं मिलेगा इतना में बोले दूकान वाले भैया
मैंने कहा एक साल हम खूब पैसे बचायेंगे
और अगली ईद पर तुम्हारी अम्मी के लिए दो तोहफे लायेंगे

...तब मैं बारह साल का था और वो ग्यारह का


अचानक कुछ दिन से जब वो स्कूल नहीं आया
पिताजी गुजर गये थे उसके, किसी ने मुझे बताया
घर की सारी जिम्मेदारी उसके कंधो पर आई थी
उसकी अम्मी तीन महीने से स्कूल की फीस भी नहीं भर पायी थी
मैंने वादा किया तेरी फीस मैं अपनी माँ से लेकर आऊँगा
मुझे क्या मालुम था की मैं अपने घर में ही मार खाऊँगा

.....तब मैं सोलह साल का था और वो पंद्रह का

ना जाने कहाँ से उसने मेरी नौकरी का पता जाना
उसने मुझे लिखा और कहा की मेरी दूकान पर जरुर आना
घर चलाने के लिए उसने चाय का एक छोटा खोखा लगाया था
अमेरिका जाने से पहले मुझे उसने एक बार दूकान पर बुलाया था
उसका घर और खोखा शहर के झोपडी वाले एरिया में पड़ता था
कुछ वक़्त कम था और कुछ वहाँ जाने का मनन ना करता था

.....तब मैं बीस साल का था और वो उन्नीस का

कुछ वक़्त पहले यहाँ अमेरिका में उसका ख़त आया था
शादी कर रहा था और उसने मुझे बुलाया था
और पूछा था की मैं शादी कब करने वाला हु
मजाक मैं बोला भी थी की क्या मैं कवारा ही मरने वाला हु
जो मेरा समाज उचित समझता मैंने वही किया
उससे कैसे कहता की मैंने उससे शादी का निमत्रण नहीं दिया

....तब मैं चौवीस साल का था और वो तेहीस का

जिंदगी की दौड़ में कितना कुछ पा गया मैं
एक एक करके ऐसे कितने वादे भूला गया मैं
वो ईद का तोहफा वो स्कूल की फीस,
आज बनकर रह गयी दिल मैं एक टीस.

काफी वक़्त गुजर गया जब उसका आखिरी ख़त आया था
उसने कोशिश तो की थी पर मैं दोस्ती का मतलब न समझ पाया था

....आज मैं अट्ठाईस का हु और वो .....शायद सत्ताईस का!



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